Saturday, July 16, 2016

शांति के धर्म की पोल खोल


सूरा- अल मायदा आयात नंबर 32

आपने अक्सर बड़े मौको पर,  टीवी चैनलों पर मुस्लिम विद्वानो और मौलवियों को यह बोलते हुयें सुना होगा कि इस्लाम दुनिया का सबसे शान्तिपूर्ण धर्म हैं। इसके लियें वे कुरान की सबसे शान्तिपूर्ण छंन्द (आयत या verse) को उदघृत करते हैं।

 ये लोग अध्याय (सुरा)- पाँच अल-मायदा ( मेज पर फैला भोजन ) के छन्द (आयत) नम्बर 32 को अक्सर उदघृत (quote) करते हैं। इसी छन्द (आयत) को ओबामा समेत कई बड़े सेक्यूलर नेता भी अपने भाषणों में प्रयोग करके दर्शा चुके हैं कि इस्लाम सच में शान्ति का हीं धर्म हैं।  
http://www.americanthinker.com/blog/2009/06/obama_quotes_verse_532_omits_5.html


आईये चले इस शान्ति के  छन्द का विश्लेषण करके सच्चाई को परखते हैं, उसके बाद इन छन्दों के प्रवर्तक मुहम्मद के जीवन में भी झांक कर देखेगें की वह कितना बड़ा शान्ति का पुजारी था।

मित्रो से आग्रह हैं कि कृपया अपने- अपने स्तर इन दावों की सच्चाई खोजने का प्रयास अवश्य करें।

आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि हिन्दी भाषा में अरबी के कई सारे शब्द प्रचलित हैं। ऐसे भी कई शब्द हैं जो हम बड़ी सहजता से बोलते हैं लेकिन अरबी में बड़े टेक्निकल हैं। टेक्निकल से मतलब वे शब्द जिनका ईजाद केवल कुछ विशिष्ट विषय के लिये किया गया लेकिन समय के साथ वे आम बोलचाल की भाषा में आ गयें उदाहरण स्वरूप ईमान, दुआ, दीन, फसाद, दुनिया, हूर, जन्नत, दोजख, जहन्नुम इत्यादि।   जैसे कि ईमान का असल अर्थ ईस्लाम के छह नियमों में विश्वास रखना। https://en.m.wikipedia.org/wiki/Iman_(concept)
इसका हिन्दी के Honesty से कोई सम्बन्ध नहीं हैं, आपसे अनुरोध हैं कि इन शब्दों को कृपया इनके हिन्दी अर्थ के आधार पर न समझेें।

चलियें अब सुरा (अध्याय) 5 के आयत (छन्द) 32 पर नजर ड़ाल लेते हैं। इस अध्याय का नाम अल - मायदा हैं। यानि फैली हुयी मेज

जब भी मौलवी या कोई सेक्यूलर कुरान की सबसे शान्तिपूर्ण छन्द को बोलता हैं तो वो कुछ इस प्रकार होता हैं।

"अगर कोई किसी इन्सान का कत्ल करता हैं तो समझो उसने पूरी कायनात (सृष्टि) को नष्ट कर दिया, और अगर कोई किसी इन्सान की रक्षा करता हैं तो समझो उसने पूरी कायनात (सृष्टि) की रक्षा की।"

प्रथम दृष्टया तो यह सच में शान्तिपूर्ण छन्द लगता हैं हालांकि इसमें मुहम्मद ने केवल इन्सान की ही बात की हैं। बाकि जीवो को वह मनुष्यों के उपभोग की वस्तु मानता था।

"लेकिन यह आयत अधूरी हैं और यहूदीयो की बाईबिल मिसनाह से चोरी की हुयी हैं।""

पूरी कुछ इस प्रकार हैं👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻

☝🏻5:32 - इसी सबब से तो हमने बनी इसराईल पर वाजिब कर दिया था कि जो शख़्स किसी को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फैलाने की सज़ा में (बल्कि नाहक़) क़त्ल कर डालेगा तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक आदमी को ज़िला दिया तो गोया उसने सब लोगों को ज़िला लिया और उन (बनी इसराईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर उसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुतेरे ज़मीन पर ज्यादतियॉ करते रहे

अँग्रेजी में
SAHIH INTERNATIONAL

Because of that, We decreed upon the Children of Israel that whoever kills a soul unless for a soul or for corruption [done] in the land - it is as if he had slain mankind entirely. And whoever saves one - it is as if he had saved mankind entirely. And our messengers had certainly come to them with clear proofs. Then indeed many of them, [even] after that, throughout the land, were transgressors.

मतलब आपने अगर किसी का कत्ल किया तो समझो कि पूरी इन्सानियत का कत्ल कर दिया और किसी की जान बचाई तो समझो पूरी इन्सानियत की जान बचाई। "लेकिन"  आप दो स्थितियों में हत्या कर सकते हैं।
पहली स्थिति वह हैं कि जब आप को किसी से हत्या का बदला लेना हो, मतलब खून का जबाव खून से। आपके परिवारी की किसी ने हत्या कर दी हो भले ही वो गलती से हो तो भी आप दूसरे सामने वाले के परिवार में हत्या कर बदला चुका सकते हैं। फिर सामने वाला कुरान के अनुसार बदला लेगा और यह क्रम इसी प्रकार चलता रहेगा जब तक की कोई एक परिवार समाप्त न हो जायें।


क्या यह शान्तिप्रिय लगता हैं?

दूसरी स्थिति उससे भी ज्यादा खतरनाक हैं, और वह सीधे हमसे जुड़ी हुयीं हैं।
इसमें कहा गया हैं कि आप दुनिया से फसाद (corruption) समाप्त करने लियें भी हत्याये कर सकते हैं। इसका अर्थ उसकी हत्या कर दो जो फसाद फैलाता हैं। अरबी में "फसाद फैलाने वाला कौन होता हैं यह भी आपको कुरान में मिल जायेगा"  आइये आगे देखते हैं।

आगे अध्याय नौ - सुरा अल-अनफाल (लड़ाई के लूट का माल) के छन्द (आयत) नम्बर - 38, 39, 40  से यह बात साफ हो जाती हैं कि फसाद फैलाने वाला कौन हैं।

8:39 मुसलमानों काफिरों से लड़े जाओ यहाँ तक कि कोई "फसाद" बाकी न रहे और सारे दुनिया में अल्लाह की दीन ही दीन हो जायें फिर अगर ये लोग फसाद से बाज न आये तो अल्लाह उनकी कार्यवाहियों को स्वंय देखता हैं।

English
YUSUF ALI

And fight them on until there is no more tumult or oppression, and there prevail justice and faith in Allah altogether and everywhere; but if they cease, verily Allah doth see all that they do.

SHAKIR

And fight with them until there is no more persecution and religion should be only for Allah; but if they desist, then surely Allah sees what they do.

यहाँ काफिर का अर्थ हिन्दु समेत सारे गैर मुसलमान हैं।
फसाद का अर्थ ऐसी कोई भी क्रिया जो ईस्लामिक नियमों के विरूद्ध हो जैसे कि मूर्तीपूजा, बहुदेववाद, सूअर का भोजन या अल्लाह के अलावा और किसी की पूजा इत्यादि।

अल्लाह का दीन मतलब अल्लाह का धर्म।

विवेचना कुछ इस प्रकार होगी, कि हे मुसलमानो तुम लोग गैर-मुस्लिमों पर तब तक हमला करते रहो जब तक वे अपनी सारी ईस्लाम विरोधी क्रियायें छोड़ न दे और जब तक पूरी दुनिया में केवल अल्लाह का धर्म ईस्लाम न रह जाये।

अब आप समझे कि पूरी दुनिया में जिहाद के नाम से इतने आतंकी हमले क्यो हो रहें हैं।

बहरहाल, मुझे आशा हैं कि आपको "फसाद" का सच्चा मतलब समझ आ गया होगा, और इनकी सबसे शान्तिप्रिय आयत 5:32 भी समझ आ गयी होगी।

🕵http://bharatdiscovery.org/india/अल-अनफाल

🕵http://quran.com/8/71


अब इसके आगे की आयत भी पढ़े आपको मुहम्मद की सोच का सहीं सहीं पता चलेगा। याद रखियेगा फसाद का क्या मतलब हैं।

5:33 - जो लोग ख़ुदा और उसके रसूल से लड़ते भिड़ते हैं (और एहकाम को नहीं मानते) और फ़साद फैलाने की ग़रज़ से मुल्को (मुल्को) दौड़ते फिरते हैं उनकी सज़ा बस यही है कि (चुन चुनकर) या तो मार डाले जाएं या उन्हें सूली दे दी जाए या उनके हाथ पॉव हेर फेर कर एक तरफ़ का हाथ दूसरी तरफ़ का पॉव काट डाले जाएं या उन्हें (अपने वतन की) सरज़मीन से शहर बदर कर दिया जाए यह रूसवाई तो उनकी दुनिया में हुई और फिर आख़ेरत में तो उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब ही है

अँग्रेजी में
SAHIH INTERNATIONAL

Indeed, the penalty for those who wage war against Allah and His Messenger and strive upon earth [to cause] corruption is none but that they be killed or crucified or that their hands and feet be cut off from opposite sides or that they be exiled from the land. That is for them a disgrace in this world; and for them in the Hereafter is a great punishment,



http://bharatdiscovery.org/india/अल-माइदा

http://quran.com/5/32


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एक राष्ट्रवादी : भारत माता की जय, जय हिन्द, वन्दे मातरम

एक मौमिन: हम भारत माता की जय, वन्दे मातरम नहीं बोलेंगे।

राष्ट्रवादी : क्यों नहीं बोलोगे, क्या यह तुम्हारा देश नहीं?

मौमिन: हाँ, यह हमारा भी मुल्क हैं लेकिन हम भारत माँ की जय नहीं बोल सकते।

राष्ट्रवादी: ये क्या, तुम देश की भाषा नहीं बोल सकते, देश की संस्कृति नहीं अपना सकते, अब तुम वन्दे मातरम भी नहीं बोल सकते ये सब तो राष्ट्रविरोधी हैं।

मौमिन: देखा, जो वन्दे मातरम नहीं बोलेगा वो राष्ट्रविरोधी बन जायेगा। यहीं हैं तुम लोगो की घटिया संघी सोच। हिन्दुओ के दलाल ।

राष्ट्रवादी : यह क्या बात हुयी?  हर राष्ट्रवादी को तुम संघी कैसे बोल सकते हो। खैर छोड़ो इस बात को तुम यह बताओ की आखिर भारत माता की जय बोलने में तुम्हे क्या एतराज हैं?

मौमिन : तुम हिन्दू अपने वतन को देवी मानते हो उसकी इबादत करते हो, उसके मंदिर भी बनाते हो। लेकिन इस्लाम में अल्लाह के अलावा और किसी की इबादत करना हराम हैं। भारत माता की जय बोलकर हम हमारे मजहब के साथ धोखा नहीं कर सकते। और वैसे भी बुतपरस्ती तो सबसे बड़ा कुफ्र हैं।

राष्ट्रवादी : अगर हम अपनी धरती माँ की पूजा करते हैं तो गलत क्या हैं? आखिर यहीं तो हमारा पालन करती हैं। धरती से हीं तो हम बने हैं और धरती में ही समा जायेगें। तुम लोग भी तो मरने के बाद इसी धरा में दफनाये जाते हो। हमारे यहाँ कहा भी गया हैं कि " जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" मतलब जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं।

मौमिन : बस यहीं तुम लोग बेअक्ल कुयें में मेढक की तरह पेश आते हो। अरे इस धरती, सूरज, चाँद, पानी, नदीं, हवा, जानवर, चौपाया, आदि सब को तुम्हारे लियें अल्लाह ने बनाया हैं। तुम अल्लाह को छोड़कर उसकी  बनाई चीज की इबादत करते हो। यहीं तो हराम हैं।

राष्ट्रवादी : क्या तुमने अल्लाह को देखा हैं? या फिर बस एक किताब में पढ़कर बाते कर रहे हो। ऐसी फैन्टेसी किताबें हर शनिवार को मुहल्ले की बुकस्टाल पर लगती हैं, कभी पढ़ना बड़ा मजा आयेगा। ये सारी कपोल कल्पनाये हैं। कम से कम जो दिख रहा हैं उसी पर विश्नास कर लो। बाकि चीजे संदेह पर छोड़ दो भाई।

मौमिन : मालूम था काफिर और मुशरिक ऐसी ही बाते करेगें, यह जो तुम बकवास कर रहे हो हमारे नबीं हजार साल पहले हीं बता गये थे कि कुफ्फार जहाँ जहाँ रहेगा वहा फसाद और फितना फैलेगा हीं। यह कोई नया नहीं हैं, और इसमें तुम लोगों की कोई गलती नहीं बस इस्लाम की रोशनी से वास्ता नहीं पड़ा। तुम कुरान पड़ो सारे गिले शिकवे दूर हो जायेगें।

राष्ट्रवादी : ठीक हैं आपकी बात मानकर पढ़ लेगें। लेकिन आप मेरा एक संदेह दूर करियें। एक तरफ आप कहते हैं कि हम भारत माता के प्रति कोई श्रद्धा भाव नहीं रखते, बल्कि सारी श्रद्धा अल्लाह पर ऱखते हैं। इस तरह से आप इस्लाम को देश से ऊपर रखते हैं। तो हम कैसे माने कि आप देशभक्त हैं?

मौमिन : हम उतने हीं देशभक्त हैं जितने आप देश के लियें । मर मिटना हमें भी आता हैं और अपनी देशभक्ति के लियें हमें कोई सबूत देने की जरूरत नहीं हैं।

राष्ट्रभक्त : बात आपने बिल्कुल सहीं कही।  लेकिन हमारी समस्या यह हैं कि जब इस्लाम और देश में से एक चुनने को कहा जाये तो आप क्या चुनेगें।
 
मौमिन : कैसा बेहुदा सवाल हैं, क्या ऐसा भी कभी हो सकता हैं?

राष्ट्रभक्त : बिल्कुल ऐसा हो सकता हैं, क्यों नहीं हो सकता? क्या इस्लाम देश के लियें खतरा नहीं हो सकता।

मौमिन : लाहौल विला कूव्वत, क्या गधे जैसा दिमाग हैं तुम्हारा, अरे कीड़े  पड़े तुम्हे जो तुम इस्लाम को देश का दुश्मन बोलते हो।

राष्ट्रभक्त : अरे मैनें कहा कि कब मालूम इस्लाम के सिपाही ही देश पर दुश्मन बनकर हमला कर दे तो क्या करोगे।

मौमिन : अरे, यह कोई पूछने की बात हैं हम भी उनका मुहँतोड़ जबाव देगें। उन्हें खत्म कर देगें।

राष्ट्रवादी : यह जानते हुयें भी कि वे सच्चे मुस्लिम हैं, इस्लाम की राह में जिहाद लड़ रहे हैं वो पूरे मुस्लिम उम्माह को एक करना चाहते हैं।

मौमिन : अगर वो सच्चे मुसलमान हैं तो मुसलमान भाईयों पर कभी हमला नहीं करेगें।

राष्ट्रवादी : अरे आप पर नहीं लेकिन हम पर तो करेगें। लेकिन आपने बताया नहीं कि उनसे लड़ेगें या नहीं।

मौमिन : अरे भाई लड़ेगें लड़ेगें।

राष्ट्रवादी: और पाकिस्तानियों पर?
 
मौमिन: (अनमने मन से) हाँ, अगर जरूरी हुआ तो।

राष्ट्रवादी : और फिलीस्तीनियों पर?

मौमिन: फिलीस्तीनियों पर क्यों? वो बेचारे तो स्वंय ही इजरायल द्वारा सताये गये हैं। इस्लाम हमें सताये हुयें बेकसूर लोगों पर हमला करने की इजाजत नहीं देता। उल्टा हमें फिलीस्तीनी भाईयों की मदद करनी चाहियें।

राष्ट्रवादी: मान लो अगर वे हिंसक हो गयें और भारत पर हमला कर दिया तो क्या करोगें। ये सिर्फ कल्पित सवाल हैं जबाव दो

मौमिन: ये कैसा सवाल हैं जो हो हीं नहीं सकता, मैं नहीं दूगाँ ऐसा फालतू जबाव।

राष्ट्रवादी: ठीक हैं अगर तुम जबाव नहीं देना चाहते तो मत दो। लेकिन यह बताओ कि अगर भारत साऊदी अरब पर हमला कर दे तो तुम किसका साथ दोगे?

मौमिन: (उखड़े हुयें अंदाज में) फिर बेहूदा सवाल, अरे क्यो करेगा भारत साउदी पर हमला आखिर क्या दुश्मनी हैं दोनो के बीच।

राष्ट्रवादी : कई कारण हो सकते हैं, आतंकियों को शह देने के लियें, पाकिस्तान का साथ देने की वजह से और भी कई कारण हैं। क्या हो अगर भारत मक्का मदीना पर बम गिरवा दे?

मौमिन: (चिढ़कर) अल्लाह करें तुजे दोजख की राख भी न मिले, कुफ्फार, अल्लहमदुल्लिलाह तेरी खाल खींच कर जहन्नुम की आग में तड़पा तड़पा कर मारा जायें। ऐसी गन्दी जुबान से तुने सल्लाहु अस्ल्लम नबी की जगह का नाम भी कैसे लिया। जो भी मक्का मदीने पर हमले की बात भी करेगा उसकी गर्दनें उतार दी जायेगी। तू निकल जा यहाँ से नहीं तो मेरे हाथो मारा जायेगा।

(इस बीच कुछ लोग मौलवी साहब को आग बबूला देख एक तरफ ले गयें)

राष्ट्रवादी : अरे मौलवी साहब, बताया नहीं आप लोग क्या करेगें? मेरा संदेह ज्यो का त्यो बना हुआ हैं।

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