Saturday, July 16, 2016

क्या जीव और जन्तुओ को मनुष्यो के उपभोग के लिए बनाया गया हैं ?

          धर्मो की शिक्षा 


काफी समय पहले की बात हैं, घने वन में एक विशाल बरगद का वृक्ष था।
यह वृक्ष विभिन्न प्रकार के पक्षियो का आश्रय स्थल था, जो कई वर्षो से यहाँ यो ही रहते आ रहे थे।
कुछ एक तो अपने पुरखो के पुरखो के जमाने से इसी वृक्ष पर रह रहे थे।
प्रात: और साय: के समय वृक्ष की डालो पर पक्षियो को चहचहाहट देखते ही बनती थी। इसी तरह सांझ के समय, बरगद के इस वृक्ष पर पक्षी लौटते हैं, वृक्ष पर पहुँचने के बाद पक्षी एक दूसरे से पूरे दिन
का अनुभव सांझा करते हैं, और विभिन्न विषयो पर वार्तालाप करते हैं।
इन्ही के बीच एक कौवा अपने पड़ोसी कबूतर से विभिन्न धर्मो के बारे में वार्तालाप कर रहा होता हैं, कौवा बोलता हैं कि देखो हिन्दू कितने भले लोग होते हैं, यह हर किसी चीज़ को पूजने हैं, जहां भी पूजा करते हैं खाद्य सामग्री, मिठाइया, फल इत्यादि भी छोड़ देते हैं, उससे हम बेचारे पक्षियो का पेट भरता हैं, यह ईश्वर के नाम से पशु पक्षियों को भी भोजन कराते रहते हैं। देखो श्राद्ध वाले दिन हम पक्षियो में सबसे निम्नतम
कौवों की भी कितनी आमद होती हैं, जगह जगह लोग प्रसाद लगाकर हमारी बाँट जोहते हैं। क्या कोई उम्मीद कर सकता हैं कि हमारी भी पूजा हो सकती हैं।
इतना सुनकर कबूतर जोकि थोड़ा चतुर और दार्शनिक स्वभाव का था, बोलता हैं, "मित्र, बात तो तुम्हारी ठीक हैं, लेकिन हिन्दू धर्म में कोई सिद्धान्त नहीं हैं। यह लोग पूरे अंधविश्वासी होते हैं, इन्हे बड़े आराम से मूर्ख बनाया जा सकता हैं, इतने सारे देवता और इतने सारे कर्मकांड, इस बीच में सच्चे ईश्वर को कौन पूछता हैं। इससे बढ़िया तो इस्लाम हैं इसमे केवल एक ही ईश्वर होता हैं और उसके अलावा और किसी कि पूजा नहीं होती, कोई ढोंग नहीं हैं, कोई मध्यस्थ नहीं, कोई उंच नीच नहीं सब बराबर हैं।
इतना सुनकर पास ही बैठी, गोरैया बोलती हैं, "भैया, हाँ सही कहते हो मैंने भी देखा हैं, मुस्लिम एक आवाज़ में इकट्ठे हो जाते हैं, यह लोग बड़े सैद्धांतिक होते हैं, सारे एक साथ ही अपने ईश्वर का नाम लेते हैं, एक दूसरे के लिए बहुत ध्यान रखते हैं, एक ही पुस्तक का अनुसरण करते हैं, यह बात हिन्दुओ में नहीं दिखती, इनके जितने देवता हैं उतने ही प्रकार से यह लोग वर्गो में बंटे हुये हैं, पूजा तो करते हैं, लेकिन किसी सिद्धान्त का पालन नहीं करते हैं।
ठीक उसी समय उसी वृक्ष की दूसरी ड़ाल पर एक वयोवृद्ध अनुभवी और ज्ञानी हंस भी इन पक्षियो के विचारो को सुन रहा होता हैं। कौवा, कबूतर और अन्य पक्षी भी सम्मान पूर्वक हंस की इस विषय पर राय जानना चाहते हैं। हँस कहता हैं कि " किसी भी धर्म के रीति रिवाजो और नियमो से कोई धर्म महान नहीं बनता, बल्कि उससे समाज पर पड़ने वाले प्रभाव और उसके मानने वालो के कर्म एवं अन्य वर्ग के सापेक्ष जो राय बनती हैं उसी से धर्म के स्वरूप का निर्णय किया जाना चाहिए।“ इस बारे में पूर्वाग्रह धारण न करिए, किसी भी धर्म की समीक्षा करना अत्यंत आवश्यक हैं।
मैं आपको एक घटना सुनता हूँ, जिसे सुनकर कतिपय आप इसका अंदाजा लगा पाएंगे कि धर्मो की शिक्षा किस तरह अन्य जीवधारियों पर असर करती हैं।
बहुत समय पहले मैं सुदूर दक्षिण से अपने एक सम्बन्धी से मिलकर आ रहा था। काफी लंबे समय तक उड़ान भरने के पश्चात मुझे थकान महसूस हुयी, अत: मैंने गुज़रते समय समीप के एक छोटे से नगर में रुक कर कुछ समाय विश्राम करना उचित समझा। अपनी प्यास बुझाने के उद्देश्य से मैं एक गृह के पास बने जलस्त्रोत को देख उतर गया। उद्यान में स्थित एक वृक्ष की शाखा पर बैठ कर मैं विश्राम करने लगा।
उस वृक्ष की ड़ाल से मैंने घर के झरोके में झाँक कर देखा की गृहस्वामी अपने पुत्रो को धार्मिक पुस्तक से ज्ञान दे रहा हैं। " स्वामी बोलता हैं, अल्लाह मनुष्य से बहुत प्यार करता हैं यह इसकी सबसे प्यारी कृति हैं, वह अल्लाह ही हैं जिसने आकाश और धरती की सृष्टि की और आकाश से तुम्हारे लिए जल उतारा, फिर वह उसके द्वारा और कितने ही तरह की पैदावार और फल तुम्हारी आजीविका के रूप में सामने लाया। उसने नौका को तुम्हारे काम मे लगाया ताकि तुम समुद्र में चल सको, फिर उसने नदियो को तुम्हें लाभ पहुचाने में लगाया। और सूर्य, चंद्रमा को तुमहरे लिए ही कार्यरत किया की एक नियत विधान के आधीन निरंतर गतिशील रहे। और रात दिन को भी तुम्हें लाभ पहुंचाने में लगा रखा हैं। उसने उस हर चीज़ को तुम्हें दिया जो तुमने माँगा । यदि तुम अल्लाह की नेमतों की गणना करना चाहो तो भी नहीं कर सकते। “
मैं सोचने लगा क्या ईश्वर ने मनुष्य को ही बनाया हैं? हम क्या ईश्वर की कृति नहीं? हमे क्या मनुष्य के भोग के लिए बनाया गया है?
इतने में गृहस्वामी का बालक मुझे देख लेता हैं और ज़ोर से चिल्लाता हैं “हँस”, पक्षियो में सर्वश्रेष्ठ एक हँस को देखकर गृह स्वामी भी बहुत प्रसन्न हो जाता हैं और कहता हैं, देखो आज अल्लाह ने एक नेमत और भेज दी और बेटे को अंदर से गुलेल लाने को बोलते हैं, यह सुनकर में भी फौरन उड़ने की कोशिश करता हूँ। परंतु जैसे ही मैं कुछ ऊँचाई पर पहुँच पाता हूँ। पीछे से एक पत्थर की जोरदार टक्कर मेरे पंजे को घायल कर देती हैं, उससे मुझे भयंकर दर्द होता हैं जिसके कारण से मुझे बेहोशी छाने लगती हैं मैं फड़फड़ा कर नीचे गिरने लगता हूँ।
इस बार मैं समीप वाले घर के उद्यान में गिरता हूँ। बहुत असहयनीय पीड़ा के कारण मुझे मूर्छा सी आने लगती हैं। मैं देखता हूँ की एक छोटा बालक मुझ पक्षी को पीड़ा के कारण छटपटाते देख स्वयं दुख से व्याकुल होकर रोये जा रहा हैं। इतने में उसकी माता आ जाती हैं और मुझे उठाकर जल पिलाती हैं एवं मेरे घावो पर औषधि का लेप लगाकर मुझे एक आरामदायक स्थान पर बैठा देती हैं। वह घरेलू स्त्री मुझे खाने के लिए अनाज भी देती हैं, गृहस्वामी भी मुझे देख कर बड़ा प्रसन्न होता हैं और अपने चक्षुओ से आभार व्यक्त करता हैं, उसकी यह प्रसन्नता एक दूसरे तरह की होती हैं जैसे जब बिछड़े हुये सम्बन्धियो के मिलने के बाद होती हैं, खैर मैं अर्धमूर्छित अवस्था में धीरे धीरे निंद्रा में खो जाता हूँ, और उसके बाद का कुछ याद नहीं रहता हैं।
प्रात: काल जब मैं उठता हूँ तो देखता हूँ कि मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हो चुका हूँ और अपने आप को तरोताजा महसूस करता हूँ, लगता हैं उस नारी की औषधि के असर की वजह से घाव बहुत जल्दी भर गए। अब मैं बिना देरी किए अपने निवास की तरफ लौटने का निर्णय लेता हूँ। बाहर उड़ने के लिए झरोखे पर बैठता हूँ और आखिरी बार उस गृहस्वामिनी देवी कि तरफ कृतज्ञता भरी दृष्टि से देखता हूँ, जो भोजन तैयार कर रही हैं। वह करुणा से भरी नज़रो से मुझे विदा करती हैं। उधर पिता भी अपने पुत्र को धर्मग्रंथो कि शिक्षा दे रहा हैं, 

“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।“
                                                        अर्थात
         सब सुखी हो, सब स्वस्थ हों । सब शुभ को पहचान सकें, कोई प्राणी दुःखी ना हो ।।

दोनों पिता पुत्र मुझे देखकर एक फिर बड़े प्रसन्न होते हैं और संतुष्ट भाव से मुझे विदा करते हैं, जैसी की उन्होने अपना कोई नैतिक कर्तव्य निभा दिया हो।
इसके बाद मैं वहाँ से वापस अपने गंतव्य की ओर उत्तर दिशा में चल पड़ता हूँ।
लेकिन पिता-पुत्र का यह व्यवहार देखकर मुझे एक दिन पहले का वह समय याद आ जाता हैं जब एक मुस्लिम पिता अपने पुत्र को शिक्षा दे रहा होता हैं, आखिर शिक्षा का मनुष्य के व्यवहार पर बहुत असर पड़ता हैं कम से कम अन्य प्राणियों के सापेक्ष तो पड़ता ही हैं, तभी तो पड़ोस में रहने वाले दो परिवारों में ज़मीन आसमान का अंतर दिखता हैं।
इस तरह अनुभवी हँस और बिना कुछ कहे अपनी बात समाप्त करता हैं तथा इस घटना से मिलने वाली को शिक्षा को अन्य पक्षियो के चिंतन पर छोड़ कर अपने निवास पर वापस लौट जाता हैं।

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